हिमालय~यात्रा_वर्तांत
~यात्रा_वर्तांत
शायद घुमकड़ी ख़ून में बस गयी है इसलिए टूथ्ब्रश भी हमेशा बेग में ही पड़ा रहता हैं.अगर आपको भगवान पे विश्वास नही हैं नास्तिक हो तो हिमालय घूम आयो.विश्वास होने लगेगा.कोई तो हैं जों दुनिया चला रहा हैं.कोई तो पर्वतों की देखरेख करता हैं, नदियों को दिशा देता हैं कोई तो हैं.कभी पापा से सुना था की हम तो नदी का पानी सीधे लौटे में भर के पी लेते थे मैं हिमालय की नदियों का पानी सीधे बोतल में भर के पिया.दिल्ली से 700 किलोमीटर दूर ये सब मुमकिन हैं.
लोग बड़े सीधे हैं पहाड़ों के कोई दयेष भावना नहि कोई आपाधापी नही.सीधे सरल लोग,वही बस जाने का मन करता हैं.घुमकड़ी आदमी को हम्बल कर देती हैं.जब कभी अकेलापन लगे घूम आयो जब कभी लगे भीड़ से घिरे पड़े हो घूम आयो