An evening in Bhopal
राहत इंदोरी साहब का एक शेर हैं की
“दिल्ली और कराची में अब मन नही लगता
सुना हैं हसरतें दिल आजकल भोपाल रहते हैं”
भोपाल एक ऐसा शहर जहाँ की हवा में मौशकी हैं| ठहराव हैं और शीतलता हैं भोपाल के बारे में सुना बहुत था की वहाँ झीलें बहुत हैं, घूमने लायक जगह हैं सो भाई एक दिन बैग पेक करके पहुँच गये निज़ामुद्दीन रेलवे स्टेशन रात 9 बजे की ट्रेन थी क़िस्मत अच्छी थी कि खिड़की वाली सीट मिल गयी, बस फिर क़्या दिमाग़ में भोपाल था और हाथ में स्मार्ट्फ़ोन, दो चार स्टैट्स पेल दिए फ़ेस्बुक पे आख़िर लोंडो को भी तो पता चले की भोपाल जा रहा हूँ|
ट्रेन ने सुबह 6 बजे अपना भोपाल उतार दिया और हाँ भोपाल गए और वहाँ का पोहा जलेबी नहीं खाया तो बेकार हैं एक प्लेट बिना कुल्ला किए पेल दी गयी पोहे का स्वाद सही था.
भोपाल के बारे में सबसे ख़ास बात ये हैं की वहाँ और मेटरोपोलिटिन शहरो की तरह आपाधापी नही हैं कोई जल्दबाज़ी नहीं हैं एक दोस्त के यहाँ रुका और फिर शाम को निकल लिया भोपाल लेक व्यू देखने क्या नज़ारा था
- Bhopal lake evening View
- Bhopal lake, evening View
- Bhopal food Poha
मैंने अपनी ज़िन्दगी में इतनी बड़ी पानी की झील नहीं देखी थी उसमें बोटिंग की वो भी दो बार वहाँ कम से कम 4 झीलें घूमी पर सच बात ये हैं की एक अंछुआ सा ऐहसास महसूस हुआ भोपाल में रहके लगा की यहाँ ही बस जाऊँ पर सोचने से क्या होता हैं एक बात बताना भूल गया की हिंदी के बड़े शायर दुष्यंत कुमार भी वही रहते थे, भोपाल में वहाँ.एक चौक पे जब खड़े होके चाय समोसे खा रहा था तो लग ही नहीं रहा था की ये किसी राज्य की राजधानी का चौक हैं बक़ौल दिल्ली के उलट एक शांति थी वहाँ,.
जो दिल को भा गयी मेरा मानना ये हैं की किसी शहर को समझना हो तो वहाँ की शाम देखने निकल जाऊँ भोपाल की शामें शायराना हैं.अब जब भी कोई भोपाल का नाम लेता हैं एक तीर सा लगता हैं सीने मैं की काश वही का होके रह जाऊँ. शानदार जबरदस्त जिंदाबाद भोपाल
#परिंदा